सिद्धपुर में रुद्रमहालय कालीन माँ बहुचर देवालय देसाई मुहल्ले के सामने के देवालय में विराजती हैं
सिद्धपुर में रुद्रमहालय के समय का श्री बहुचर माताजी का प्राचीन मंदिर है जो रुद्रमहालय के पास ही उसके प्राचीन इतिहास से जुड़ा हुआ है। जिस समय रुद्रमहालय का निर्माण करने के लिए शिल्पियों (सोमपुरा) को बुलवाया गया था उस समय उन्होंने इस स्थान पर अपने भजन-पूजन कार्य के उद्देश्य से श्री बहचर माता जी के मंदिर का निर्माण किया था और माताजी का भजन-पूजन करने के बाद ही रुद्रमहालय के निर्माण कार्य के लिए जाते थे।
जब सुलतान अल्लाउद्दीन खिलजी ने रुद्रमहालय का विध्वंस करने हेतु आक्रमण किया उस समय बहुचरमाता जी के पुजारी ने माताजी के संकेत के अनुसार उसे चमत्कार दिखाने के लिए ही बादशाह को शंखलपुर जाने को कहा था। उसके बाद बादशाह अपनी सेना के साथ शंखलपुर गया, वहाँ उसकी सेना ने माताजी के मुर्गे खाए। उसके बाद माताजी के एक मुर्गे की कुकडू-कूँ मात्र से भक्ष्य किए गए सभी मुर्गे सैनिकों के पेट फाड़कर जिंदा बाहर निकले और बादशाह की सेना वहीं पर मौत के घाट उतर गई। इसका उल्लेख श्री बहुचर बावनी में मिलता है।
बहुचरमाता जी के निज मंदिर में आंगी (दुल्हन को ननिहाल की ओर से मिलनेवाला बिना सिला-तुरपा वस्त्र) तथा गोखल का पूजन-अर्चन होता है । इसे विगत 167 वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी शुक्ल मोहनलाल दुर्लभराम के वंशज सँभाल रहे हैं। संवत् 1898 में गायकवाड़ सरकार ने सेवा-कार्य दिया था। वर्तमान में श्री बचुभाई मोहनलाल शुक्ल 62 वर्ष से अविरत माताजी की सेवा-पूजा करते हैं, साथ ही वे स्वयं वाला त्रिपुरसुंदरी के दीक्षार्थी भी हैं।
पिछल पैंतालीस वर्षों से निज मंदिर में मूंगफली के तेल का अखंड दीपक भी जल रहा है। प्रत्येक रविवार तथा मंगलवार को माताजी के मंदिर में भक्तों की विशेष भीड़ होती है। भक्तों का अविरत प्रवाह आता है और अपनी मनौती पूरी होने का संतोष प्राप्त करके जाता है। श्री बहुचरमाता जी की कृपा से जो संतानसुख से वंचित हों, जिसे शरीर में कोई भी असाध्य रोग (जिसमें सर्जरी तक के रोग) हुआ हो इत्यादि में भी लाभ होने का अनुभव अनेक भक्तों को हुआ है।
श्री बहुचरमाता जी सोमपुरा, मोढ़, घांची इत्यादि जातियों की कुलदेवी भी हैं। माताजी का जाता प्रिय प्रसाद लाचीदाना सुखड़ी (गेहूँ के थोड़े मोटे आटे, घी तथा गुड़ से बनी एकदम सूखी मिठाई) तथा नारियल है, साथ ही माँ के चाँदी धातु प्रिय है। ऐसी मान्यता है कि चाँदी की जीभ चढ़ाने से बच्चे बोलने लगते हैं। किसी अंग में व्याधि हो तो चाँदी का अंग चढ़ाने माताजी वह व्याधि मिटा देती हैं।
डॉ. जयनारायण व्यास
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