सिद्धपुर: मातृ गयातीर्थ की दिव्यता से जुड़ी एक अनकही यात्रा
उत्तर गुजरात के प्रसिद्ध तीर्थ बचराजी (बहुचराजी माता मंदिर) और उंझा की उमिया माता मंदिर की यात्रा के बाद एक परिवार ने सोचा कि वापसी से पहले थोड़ा समय पास ही के किसी नए स्थल को समर्पित किया जाए। तभी परिवार की एक सदस्य ने सुझाव दिया कि सिद्धपुर चलते हैं — जहां पुराने खूबसूरत हवेलियों के बारे में सुना था।
इरादा बस गाड़ी से उन गलियों से गुजरने का था, लेकिन भाग्य की योजना कुछ और थी…
एक अनजाना संकेत: श्रीस्थल संग्रहालय
जब वे रास्ते में एक स्थान पर दिशा पूछने के लिए रुके, तभी उनकी नजर एक बोर्ड पर पड़ी — "श्रीस्थल संग्रहालय – मातृ गयातीर्थ क्षेत्र"। ‘श्रीस्थल’ शब्द ने सबका ध्यान खींचा क्योंकि इसkका अर्थ होता है “श्री अर्थात लक्ष्मी का स्थान”।
जिज्ञासावश वे भीतर चले गए। बाहर से यह एक सुंदर उद्यान जैसा दिखता था, पर भीतर जो अनुभव मिला — वो एक आध्यात्मिक जगत का प्रवेशद्वार बन गया।
मातृ गयातीर्थ – जहां माताओं की स्मृति जीवंत है
संग्रहालय के द्वार पर लिखा था — “मातृ गयातीर्थ क्षेत्र”। यह नाम अपने आप में ही बहुत कुछ कहता है। यद्यपि पहली झलक में यह कोई पारंपरिक तीर्थस्थल नहीं लग रहा था, फिर भी उन्होंने आगे बढ़ने का निर्णय लिया।
श्रीस्थल संग्रहालय का अनुभव
प्रवेश पर एक अद्भुत दो मंज़िला तोरण (तोरणद्वार) दिखा, जो चार स्तंभों पर टिका था। भारत में इस तरह की वास्तुकला दुर्लभ है।
जैसे ही वे भीतर पहुंचे, एक गाइड उन्हें नीचे की ओर बनी एक कुएं जैसी संरचना में ले गया, जिसे तीर्थ गैलरी कहा जाता है। वहां दीवारों पर बनी मिनीएचर शैली की जीवन्त चित्रकला ने मनु से लेकर परशुराम तक की कथा को जीवंत कर दिया।
परशुराम ने अपने पिता ऋषि जमदग्नि के कहने पर अपनी माता रेणुका का वध किया था। इस पाप से मुक्ति के लिए उन्होंने सिद्धपुर में प्रायश्चित किया था। यही कथा चित्रों में दर्शाई गई थी।
चित्रकला का केंद्र था — बिंदु सरोवर, जो इस तीर्थ की आत्मा है। साथ ही, यहां मातृकाओं की मूर्तियाँ, प्रकृति पूजा और मातृत्व के महत्व को उजागर किया गया है।
इतिहास और समाज की झलक
ऊपरी मंज़िलों पर दो और गैलरी हैं:
- इतिहास गैलरी (Itihasa Gallery): गुजरात से मिले सिक्के, औजार, जैन चित्रकला और खगोलीय शिल्पकला।
- समाज गैलरी (Samaj Gallery): उत्तर गुजरात की परंपराएं, लकड़ी की खिड़कियाँ, बर्तन, और लोकाचार दर्शाती है।
बिंदु सरोवर – मातृ तर्पण की पवित्र भूमि
संग्रहालय के बाद, उन्होंने बिंदु सरोवर का रुख किया। जहां वे एक बड़े जलकुंड की अपेक्षा कर रहे थे, वहां उन्हें मिला एक छोटा सा आयताकार सरोवर, जिसके चारों ओर मंदिर और मंडप बने हुए थे।
धार्मिक महत्त्व
ऋग्वेद में इसे दाशु गांव कहा गया है। महाभारत के वन पर्व में भी पांडवों के यहां आगमन का उल्लेख है।
स्थानीय पुरोहितों और स्थल पुराण के अनुसार, यह भूमि कपिल मुनि, प्रजापति कर्दम और उनकी पत्नी देवहूति से जुड़ी है।
यहाँ लोग कार्तिक मास में विशेष रूप से मातृपक्ष के पितरों के तर्पण हेतु आते हैं — यह परंपरा गया तीर्थ के विपरीत केवल माताओं के नाम पर तर्पण करने की अनूठी परंपरा है।
बिंदु सरोवर के प्रमुख मंदिर
- मातृगया भगवान मंदिर – जिसे गया गदाधर भगवान का मंदिर भी कहा जाता है।
- कपिल मुनि मंदिर – दर्शाता है जहाँ मुनि ध्यानस्थ थे।
- कर्दम ऋषि और देवहूति मंदिर – उनके तपोस्थल के रूप में मान्य।
इसके अलावा:
- सरस्वती, अन्नपूर्णा और गरुड़ जी के छोटे मंदिर
- एक प्राचीन शिव मंदिर
- दो तर्पण मंडप – जहां श्राद्ध कर्म किए जाते हैं।
- एक मोक्ष पीपल वृक्ष, जिसके पास एक छोटा मंदिर है जहाँ परशुराम अपनी माता रेणुका के चरणों की पूजा करते दिखाए गए हैं।
तीन प्रमुख सरोवर
- बिंदु सरोवर
- ज्ञान वापिका
- अल्पा सरोवर
ये तीनों कपिल मुनि आश्रम परिसर में स्थित हैं। वर्तमान में केवल एक में जल उपलब्ध है।
सिद्धपुर – एक आध्यात्मिक धरोहर
सिद्धपुर केवल एक तीर्थ नहीं, एक गूढ़ अनुभव है। यहाँ इतिहास, आध्यात्मिकता और संस्कृति का अद्भुत संगम है।
जहाँ भारतवर्ष में पितरों के लिए श्राद्ध आम बात है, सिद्धपुर वह स्थान है जहां माताओं के लिए विशेष तर्पण किया जाता है — यह इसे संपूर्ण भारत में अनोखा बनाता है।
यात्रा सुझाव
- आदर्श समय: अक्टूबर से मार्च (विशेष रूप से कार्तिक पूर्णिमा)
- स्थान: सिद्धपुर, गुजरात (उंझा से लगभग 30 किलोमीटर दूर)
- आसपास के दर्शनीय स्थल:
- बहुचराजी माता मंदिर
- उमिया माता मंदिर, उंझा
- रानी की वाव, पाटण
- सूर्य मंदिर, मोढेरा
निष्कर्ष
यात्रा में कई बार बिना योजना के मोड़ ही सबसे यादगार बन जाते हैं। सिद्धपुर की यह यात्रा भी कुछ वैसी ही थी - जो शुरू हुई हवेलियों को देखने के बहाने, और बदल गई मातृत्व, मोक्ष और इतिहास से जुड़ी एक दिव्य अनुभूति में।
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